उपनिषद : Upanishad Download in hindi

उपनिषद

उपनिषद शब्द की निर्माण उप (निकट), नि (नीचे), और षद (बैठो) से है। इस संसार के बारे में सत्य को जानने के लिए शिष्यों के दल अपने गुरु के निकट बैठते थे। पुरातन काल में  शिक्षा के समय छात्र अपने शिक्षक के पास ही बैठते थे। उपनिषद मुख्य रूप से ज्ञान-कांड या ज्ञान भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। उपनिषद, श्रुति में शामिल हैं

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उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूल आधार हैं, भारतीय आध्यात्मिक दर्शन के स्रोत हैं। वे ब्रह्मविद्या हैं। जिज्ञासाओं के ऋषियों द्वारा खोजे हुए उत्तर हैं। वे चिंतनशील ऋषियों की ज्ञानचर्चाओं का सार हैं। वे कवि-हृदय ऋषियों की काव्यमय आध्यात्मिक रचनाएं हैं, अज्ञात की खोज के प्रयास हैं, वर्णनातीत परमशक्ति को शब्दों में बांधने की कोशिशें हैं और उस निराकार, निर्विकार, असीम, अपार को अंतरदृष्टि से समझने और परिभाषित करने की अदम्य आकांक्षा के लेखबद्ध विवरण हैं।

उपनिषदों का विभाजन

उपनिषदों की कुल संख्या 108 है। प्रमुख उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक, कौषीतकि, मुण्डक, प्रश्न, मैत्राणीय आदि। लेकिन शंकराचार्य ने जिन 10 उपनिषदों पर अपना भाष्य लिखा है, उनको प्रमाणिक माना गया है।ये हैं - ईश, केन, माण्डूक्य, मुण्डक, तैत्तिरीय, ऐतरेय, प्रश्न, छान्दोग्य और बृहदारण्यक उपनिषद। इसके अतिरिक्त श्वेताश्वतर और कौषीतकि उपनिषद भी महत्त्वपूर्ण हैं। इस प्रकार 103 उपनिषदों में से केवल 13 उपनिषदों को ही प्रामाणिक माना गया है।

 भारत का प्रसिद्ध आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' मुण्डोपनिषद से लिया गया है। 

मुक्तिकोपनिषद के अनुसार 108 उपनिषद चार वेदों के अनुसार विभाजित हैं जो इस प्रकार हैं:

  • ऋग्वेद के 10 उपनिषद
  • शुक्ल-यजुर्वेद से 19 उपनिषद
  • 32 उपनिषद कृष्ण-यजुर्वेद से
  • सामवेद के 16 उपनिषद और
  • अथर्ववेद से 31 उपनिषद।

वेदों से संबंधित प्रमुख तेरह उपनिषद हैं:

(A) ऋग्वेद के उपनिषद:

(1) ऐतरेय उपनिषद,

(2) कौशिकी उपनिषद,

(B) शुक्ल-यजुर्वेद के उपनिषद:

(3) बृहदारण्यक उपनिषद,

(4) ईशा उपनिषद,

(C) कृष्ण-यजुर्वेद के उपनिषद:

(5) तैत्तिरीय उपनिषद,

(6) कथा उपनिषद,

(7) श्वेताश्वतर उपनिषद,

(8) मैत्रायण्य उपनिषद

(D) सामवेद के उपनिषद:

(9) छांदोग्य उपनिषद,

(10) केना उपनिषद,

(E) अथर्ववेद के उपनिषद:

(11) मुंडक उपनिषद,

(12) मंडुक्य उपनिषद,

(13) प्रश्न उपनिषद,

 उपनिषदों को अक्सर रहस्य (गुप्त) या गुह्य (रहस्य) के रूप में भी कहा जाता है। उपनिषदों में हम पाते हैं कि शिक्षाओं की गोपनीयता और रहस्य के कारण, एक शिक्षक उस छात्र को निर्देश देने से इंकार कर देता है जिसने निर्देश प्राप्त करने के लिए अपनी योग्यता साबित नहीं की है। एक अन्य परिभाषा के माध्यम से, शब्द मुख्य रूप से ज्ञान को दर्शाता है, फिर भी निहितार्थ से यह उस पुस्तक को भी संदर्भित करता है जिसमें वह ज्ञान होता है।  उपनिषदों का दर्शन वेदान्त भी कहलाता है, जिसका अर्थ है वेदों का अन्त, उनकी परिपूर्ति। इनमें मुख्यत: ज्ञान से सम्बन्धित समस्याऔं पर विचार किया गया है।

उपनिषदों का प्रमुख विषय

उपनिषद धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। वे वैदिक रहस्योद्घाटन के अंतिम चरण का गठन करते हैं। वे ब्रह्म (ब्रह्मविद्या) के ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह दुनिया क्या है? मैं कौन हूँ? मरने के बाद मेरा क्या होता है? - इन उपनिषदों में ऐसे प्रश्न पूछे और उत्तर दिए गए हैं। उपनिषदों का आवश्यक विषय संसार और ईश्वर की प्रकृति है। पहले से ही ऋग्वेद के भजनों में, हम यहाँ और वहाँ देखते हैं कि असंख्य देवताओं से एक अनंत पर जोर दिया गया है जैसा कि प्रसिद्ध मार्ग में है। 'एकम सद विप्र बहुधा वदन्ति'। यह उपनिषदों में अधिक स्पष्ट हो जाता है और यहाँ बहुत अच्छी तरह से चित्रित किया गया है। सच्चे ज्ञान और मोक्ष का सिद्धांत उपनिषद दर्शन के प्रमुख विषय हैं। ये ग्रंथ परम वास्तविकता की प्रकृति की जांच की पिछली पंक्ति की परिणति को चिह्नित करते हैं।

वेदों को आम तौर पर दो भाग माना जाता है, कर्म-कांड (क्रिया या अनुष्ठान से संबंधित भाग) और ज्ञान-कांड (ज्ञान से संबंधित भाग)। संहिता और ब्राह्मण मुख्य रूप से कर्म-कांड या अनुष्ठान भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि उपनिषद मुख्य रूप से ज्ञान-कांड या ज्ञान भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। उपनिषद, हालांकि, श्रुति में शामिल हैं। वे वर्तमान में सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से पढ़े जाने वाले वैदिक ग्रंथ हैं।

उपनिषदों को अक्सर 'वेदांत' कहा जाता है। वस्तुतः वेदांत का अर्थ है वेद का अंत, वेदस्य अंतः, निष्कर्ष (अंत) और साथ ही वेदों का लक्ष्य (अंत)। कालानुक्रमिक रूप से वे वैदिक काल के अंत में आए थे। चूंकि उपनिषदों में अंतिम दार्शनिक समस्याओं की कठिन चर्चाएँ होती हैं, इसलिए उन्हें विद्यार्थियों को उनके पाठ्यक्रम के अंत में पढ़ाया जाता था। उपनिषदों को 'वेद का अंत' कहा जाने का मुख्य कारण यह है कि वे वेद के केंद्रीय उद्देश्य का प्रतिनिधित्व करते हैं और वेद के उच्चतम और अंतिम लक्ष्य को समाहित करते हैं क्योंकि वे मोक्ष या परम आनंद से संबंधित हैं।

प्रसिद्ध भारतीय विद्वानों की दृष्टि में उपनिषद

स्वामी विवेकानन्द—'मैं उपनिषदों को पढ़ता हूँ, तो मेरे आंसू बहने लगते हैं। यह कितना महान् ज्ञान है? हमारे लिए यह आवश्यक है कि उपनिषदों में सन्निहित तेजस्विता को अपने जीवन में विशेष रूप से धारण करें। हमें शक्ति चाहिए। शक्ति के बिना काम नहीं चलेगा। यह शक्ति कहां से प्राप्त हो? उपनिषदें ही शक्ति की खानें हैं। उनमें ऐसी शक्ति भरी पड़ी है, जो सम्पूर्ण विश्व को बल, शौर्य एवं नवजीवन प्रदान कर सकें। उपनिषदें किसी भी देश, जाति, मत व सम्प्रदाय का भेद किये बिना हर दीन, दुर्बल, दुखी और दलित प्राणी को पुकार-पुकार कर कहती हैं- उठो, अपने पैरों पर खड़े हो जाओ और बन्धनों को काट डालो। शारीरिक स्वाधीनता, मानसिक स्वाधीनता, अध्यात्मिक स्वाधीनता- यही उपनिषदों का मूल मन्त्र है।'

कवि रविन्द्रनाथ टैगोर–'चक्षु-सम्पन्न व्यक्ति देखेगें कि भारत का ब्रह्मज्ञान समस्त पृथिवी का धर्म बनने लगा है। प्रातः कालीन सूर्य की अरुणिम किरणों से पूर्व दिशा आलोकित होने लगी है। परन्तु जब वह सूर्य मध्याह्र गगन में प्रकाशित होगा, तब उस समय उसकी दीप्ति से समग्र भू-मण्डल दीप्तिमय हो उठेगा।'

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन–'उपनिषदों को जो भी मूल संस्कृत में पढ़ता है, वह मानव आत्मा और परम सत्य के गुह्य और पवित्र सम्बन्धों को उजागर करने वाले उनके बहुत से उद्गारों के उत्कर्ष, काव्य और प्रबल सम्मोहन से मुग्ध हो जाता है और उसमें बहने लगता है।'

सन्त विनोवा भावे— 'उपनिषदों की महिमा अनेकों ने गायी है। हिमालय जैसा पर्वत और उपनिषदों- जैसी कोई पुस्तक नहीं है, परन्तु उपनिषद कोई साधारण पुस्तक नहीं है, वह एक दर्शन है। यद्यपि उस दर्शन को शब्दों में अंकित करने का प्रयत्न किया गया है, तथापि शब्दों के क़दम लड़खड़ा गये हैं। केवल निष्ठा के चिह्न उभरे है। उस निष्ठा के शब्दों की सहायता से हृदय में भरकर, शब्दों को दूर हटाकर अनुभव किया जाये, तभी उपनिषदों का बोध हो सकता है । मेरे जीवन में 'गीता' ने 'मां का स्थान लिया है। वह स्थान तो उसी का है। लेकिन मैं जानता हूं कि उपनिषद मेरी माँ की भी है। उसी श्रद्धा से मेरा उपनिषदों का मनन, निदिध्यासन पिछले बत्तीस वर्षों से चल रहा है।[10]'

गोविन्दबल्लभ –'उपनिषद सनातन दार्शनिक ज्ञान के मूल स्रोत है। वे केवल प्रखरतम बुद्धि का ही परिणाम नहीं है, अपितु प्राचीन ॠषियों की अनुभूतियों के फल हैं।'

भारतीय मनीषियों द्वारा जितने भी दर्शनों का उल्लेख मिलता है, उन सभी में वैदिक मन्त्रों में निहित ज्ञान का प्रादुर्भाव हुआ है। सांख्य तथा वेदान्त (उपनिषद) में ही नहीं, जैन और बौद्ध-दर्शनों में भी इसे देखा जा सकता है। भारतीय संस्कृति से उपनिषदों का अविच्छिन्न सम्बन्ध है। इनके अध्ययन से भारतीय संस्कृति के अध्यात्मिक स्वरूप का सच्चा ज्ञान हमें प्राप्त होता है।

विदेशी विद्वानों की दृष्टि में उपनिषद

केवल भारतीय जिज्ञासुओं की ध्यान ही उपनिषदों की ओर नहीं गया है, अनेक पाश्चात्य विद्वानों को भी उपनिषदों को पढ़ने और समझने का अवसर प्राप्त हुआ है। तभी वे इन उपनिषदों में छिपे ज्ञान के उदात्त स्वरूप से प्रभावित हुए है। इन उपनिषदों की समुन्नत विचारधारा, उदात्त चिन्तन, धार्मिक अनुभूति तथा अध्यात्मिक जगत् की रहस्यमयी गूढ़ अभिव्य्क्तियों से वे चमत्कृत होते रहे हैं और मुक्त कण्ठ से इनकी प्रशंसा करते आये हैं।

अरबदेशीय विद्वान् अलबरुनी—'उपनिषदों की सार-स्वरूपा 'गीता' भारतीय ज्ञान की महानतम् रचना है।'

दारा शिकोह— 'मैने क़ुरान, तौरेत, इञ्जील, जुबर आदि ग्रन्थ पढ़े। उनमें ईश्वर सम्बन्धी जो वर्णन है, उनसे मन की प्यास नहीं बुझी। तब हिन्दुओं की ईश्वरीय पुस्तकें पढ़ीं। इनमें से उपनिषदों का ज्ञान ऐसा है, जिससे आत्मा को शाश्वत शान्ति तथा आनन्द की प्राप्ति होती है। हज़रत नबी ने भी एक आयत में इन्हीं प्राचीन रहस्यमय पुस्तकों के सम्बन्ध में संकेत किया है।[11]'

जर्मन दार्शनिक आर्थर शोपेन हॉवर— 'मेरा दार्शनिक मत उपनिषदों के मूल तत्त्वों के द्वारा विशेष रूप से प्रभावित है। मैं समझता हूं कि उपनिषदों के द्वारा वैदिक-साहित्य के साथ परिचय होना, वर्तमान शताब्दी का सनसे बड़ा लाभ है, जो इससे पहले किसी भी शताब्दी को प्राप्त नहीं हुआ। मुझे आशा है कि चौदहवीं शताब्दी में ग्रीक-साहित्य के पुनर्जागरण से यूरोपीय-साहित्य की जो उन्नति हुई थी, उसमें संस्कृत-साहित्य का प्रभाव, उसकी अपेक्षा कम फल देने वाला नहीं था। यदि पाठक प्राचीन भारतीय ज्ञान में दीक्षित हो सकें और गम्भीर उदारता के साथ उसे ग्रहण कर सकें, तो मैं जो कुछ भी कहना चाहता हूं, उसे वे अच्छी तरह से समझ सकेंगे उपनिषदों में सर्वत्र कितनी सुन्दरता के साथ वेदों के भाव प्रकाशित हैं। जो कोई भी उपनिषदों के फ़ारसी, लैटिन अनुवाद का ध्यानपूर्वक अध्ययन करेगा, वह उपनिषदों की अनुपम भाव-धारा से निश्चित रूप से परिचित होगा। उसकी एक-एक पंक्ति कितनी सुदृढ़, सुनिर्दिष्ट और सुसमञ्जस अर्थ प्रकट करती है, इसे देखकर आँखें खुली रह जाती है। प्रत्येक वाक्य से अत्यन्त गम्भीर भावों का समूह और विचारों का आवेग प्रकट होता चला जाता है। सम्पूर्ण ग्रन्थ अत्यन्त उच्च, पवित्र और एकान्तिक अनुभूतियों से ओतप्रोत हैं। सम्पूर्ण भू-मण्डल पर मूल उपनिषदों के समान इतना अधिक फलोत्पादक और उच्च भावोद्दीपक ग्रन्थ कही नहीं हैं। इन्होंने मुझे जीवन में शान्ति प्रदान की है और मरते समय भी यह मुझे शान्ति प्रदान करेंगे।'

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शोपेन हॉवर ने आगे भी कहा— 'भारत में हमारे धर्म की जड़े कभी नहीं गड़ेंगी। मानव-जाति की ‘पौराणिक प्रज्ञा’ गैलीलियो की घटनाओं से कभी निराकृत नहीं होगी, वरन् भारतीय ज्ञान की धारा यूरोप में प्रवाहित होगी तथा हमारे ज्ञान और विचारों में आमूल परिवर्तन ला देगी। उपनिषदों के प्रत्येक वाक्य से गहन मौलिक और उदात्त विचार प्रस्फुटित होते हैं और सभी कुछ एक विचित्र, उच्च, पवित्र और एकाग्र भावना से अनुप्राणित हो जाता है। समस्त संसार में उपनिषदों-जैसा कल्याणकारी व आत्मा को उन्नत करने वाला कोई दूसरा ग्रन्थ नहीं है। ये सर्वोच्च प्रतिभा के पुष्प हैं। देर-सवेर ये लोगों की आस्था के आधार बनकर रहेंगे।' शोपेन हॉवर के उपरान्त अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने उपनिषदों पर गहन विचार किया और उनकी महिमा को गाया।

इमर्सन— 'पाश्चात्य विचार निश्चय ही वेदान्त के द्वारा अनुप्राणित हैं।'

मैक्समूलर— 'मृत्यु के भय से बचने, मृत्यु के लिए पूरी तैयारी करने और सत्य को जानने के इच्छुक जिज्ञासुओं के लिए, उपनिषदों के अतिरिक्त कोई अन्य-मार्ग मेरी दृष्टि में नहीं है। उपनिषदों के ज्ञान से मुझे अपने जीवन के उत्कर्ष में भारी सहायता मिली है। मै उनका ॠणी हूं। ये उपनिषदें, आत्मिक उन्नति के लिए विश्व के समस्त धार्मिक साहित्य में अत्यन्त सम्मानीय रहे हैं और आगे भी सदा रहेंगे। यह ज्ञान, महान, मनीषियों की महान् प्रज्ञा का परिणाम है। एक-न-एक दिन भारत का यह श्रेष्ठ ज्ञान यूरोप में प्रकाशित होगा और तब हमारे ज्ञान एवं विचारों में महान् परिवर्तन उपस्थित होगा।'

प्रो. ह्यूम— 'सुकरात, अरस्तु, अफ़लातून आदि कितने ही दार्शनिक के ग्रन्थ मैंने ध्यानपूर्वक पढ़े है, परन्तु जैसी शान्तिमयी आत्मविद्या मैंने उपनिषदों में पायी, वैसी और कहीं देखने को नहीं मिली।[12]'

प्रो. जी. आर्क— 'मनुष्य की आत्मिक, मानसिक और सामाजिक गुत्थियां किस प्रकार सुलझ सकती है, इसका ज्ञान उपनिषदों से ही मिल सकता है। यह शिक्षा इतनी सत्य, शिव और सुन्दर है कि अन्तरात्मा की गहराई तक उसका प्रवेश हो जाता है। जब मनुष्य सांसरिक दुःखो और चिन्ताओं से घिरा हो, तो उसे शान्ति और सहारा देने के अमोघ साधन के रूप में उपनिषद ही सहायक हो सक्ते हैं।[13]'

पॉल डायसन— 'वेदान्त (उपनिषद-दर्शन) अपने अविकृत रूप में शुद्ध नैतिकता का सशक्ततम आधार है। जीवन और मृत्यु कि पीड़ाओं में सबसे बड़ी सान्तवना है।‘

डॉ. एनीबेसेंट— ‘भारतीय उपनिषद ज्ञान मानव चेतना की सर्वोच्च देन है।'

बेबर— 'भारतीय उपनिषद ईश्वरीय ज्ञान के महानतम ग्रन्थ हैं। इनसे सच्ची आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है। विश्व-साहित्य की ये अमूल्य धरोहर है।

इसीलिए उपनिषदों का महत्त्व, सर्व-कल्याण का श्रेष्ठतम प्रतीक है।

तो आशा है हमें की ,आप सब भी उपनिषद् का अध्यन कर संसार में इसकी गरिमा बढ़ाएंगे और अपने ज्ञान के चमक से संसार को रौशन करेंगे। 




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