ओम नमो भगवते वासुदेवाय | Om Namo Bhagvate Vasudevay

ओम नमो भगवते वासुदेवाय सबसे लोकप्रिय और सिद्ध हिंदू मंत्रों में से एक है। इस मंत्र को द्वादसाक्षरी या 'बारह-अक्षर' मंत्र के रूप में जाना जाता है, ओम नमो भगवते वासुदेवाय कृष्ण के अवतार में भगवान श्री विष्णु को समर्पित है।

इस जीवन में कई बार में ऐसी समस्याएं आ जाती हैं, जिनका कोई समाधान नहीं दिखाई देता। शायद ही कोई मनुष्य हो जिसके जिंदगी में  कभी उतार चढ़ाओ स्थिति न उत्पन्न हुई हो। इन स्थितयों में व्यक्ति बहुत अधिक निराश हो जाता है और कई बार तो डिप्रेशन में आकर गलत कदम भी उठा लेता है।उन्ही परिस्थितयों में श्री विष्णु का यह सिद्ध मंत्र का महत्व बढ़ जाता है।  यह वैदिक ग्रंथ "श्रीमद्भागवतम" का प्रमुख महामंत्र है। यह महामंत्र विष्णु पुराण में भी मिलता है। कुछ लोग इसे कीर्तन या भजन के रूप में भी जपते हैं।

तांत्रिक परंपरा के अनुसार इस मंत्र की उत्पत्ति करने वाले ऋषि (द्रष्टा या ऋषि) प्रजापति हैं, लेकिन पौराणिक परंपरा में ऋषि नारद हैं। इस अंतर के बावजूद, दोनों परंपराएं इस बात से सहमत हैं कि ओम नमो भगवते वासुदेवय सर्वोच्च विष्णु मंत्र हैं।

ध्रुव ने जपा था ये मंत्र

बृहस्‍पतिवार को भगवान विष्णु की पूजा से सभी भौतिक सुख प्राप्त होते हैं। विशेष रूप से नौकरी या व्यवसाय में पद और तरक्की के लिए इस दिन विष्णु जी की पूजा बहुत शुभ व प्रभावी मानी गई है। भक्त ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर नारायण ने उन्हें अपने चतुर्भुज रूप दर्शन कराया । पौराणिक कथाओं की मानें तो भक्त ध्रुव ने अद्भुत विष्णु भक्ति से ही ऊंचा पद व यश पाया, जिसके लिए उन्‍होंने द्वादश यानी बारह अक्षर के मंत्र से भगवान का विष्णु स्मरण किया था। 

ओम नमो भगवते वासुदेवाय

ओम नमो भगवते वासुदेवाय क्यों है मंत्र महामंत्र 

द्वादश अक्षर मन्त्र केवल मन्त्र नहीं भगवान् विष्णु का महामन्त्र है। ऐसा विश्‍वास किया जाता है कि इस महामन्त्र के प्रभाव से साधक मनवांछित फल की प्राप्ति कर सकता है। विशेष बात ये है कि इस महामन्त्र का जाप करने के लिए पौराणिक शास्त्रों व ग्रंथो में कोई विशेष निषेध या प्रतिबंध नहीं बताया गया है। स्त्री-पुरुष कहीं भी, कभी भी द्वादश अक्षर मन्त्र का जाप कर के विष्णु जी की कृपा व स्नेह प्राप्‍त कर सकता है।

महामंत्र का अर्थ 

प्राचीन हिंदू पाठ, विष्णु पुराण में पाया गया, ओम नमो भगवते वासुदेवय का अनुवाद "मैं भगवान वासुदेव (भगवान कृष्ण) को नमन करता हूं" के रूप में किया जा सकता है। हालाँकि, इस मंत्र का पाठ उतना ही पवित्र ध्वनि स्पंदनों के लाभों के लिए किया जाता है जितना कि किसी विशिष्ट अर्थ के लिए।

इस मंत्र को मोक्ष या मुक्ति (मुक्ति) मंत्र के रूप में समझा जाता है, जिसे संसार से आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने या मृत्यु और पुनर्जन्म के आवर्ती चक्र के रूप में पढ़ा जाता है।

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