Karna And Arjuna fight| कर्ण और अर्जुन का युद्ध

Karna And Arjuna fight | कर्ण और अर्जुन का युद्ध

युद्ध की शुरूवात  ऐसे दोनों योद्धा कर्ण तथा अर्जुन  स्वेत घोड़ोंवाले  रथ के साथ  युद्ध के लिये आमने-सामने आकर डट गए गये। दोनों ने एक-दूसरे पर भयंकर  अस्त्रों का प्रहार आरम्भ करने लगे । दोनों के ही सारथि और घोड़े के  शरीर बाणोंसे  चोटिल हो  गये। खुन की धारा बहने लगी। वे अपने वज्रके समान बाणोंसे इन्द्र और वृत्रा सुरकी भाँति एक-दूसरे पर प्रहार कर रहे थे। उस समय हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों से युक्त दोनों ओरकी सेनाएँ भय से काँप रही थीं।  

इतने में ही में कर्ण मतवाले हाथी की भाँति अर्जुन को मारने की इच्छासे आगे बढ़ा। यह देख पांडवो  चिल्लाकर कहा-'अर्जुन ! अब विलम्ब करना व्यर्थ है। कर्ण सामने है, इसे मार डालो  डालो; इसका मस्तक उड़ा दो।' इसी कौरव  के बहुत से योद्धा भी कर्णसे कहने लगे-'कर्ण ! जाओ, जाओ अपने तीखे बाणोंसे अर्जुन को मार डालो।'

तब पहले कर्णने दस बड़े-बड़े बाणोंसे अर्जुन पर प्रहार किया । फिर अर्जुन ने भी तेज  धार वाले तीर से  कर्णकी काँखमें हंसते-हंसते प्रहार किया। अब दोनों एक दूसरेको अपने-अपने बाणोंका निशाना बनाने लगे और हर्ष में भरकर भयंकर रूपसे आक्रमण करने लगे। अर्जुन ने गाण्डीव धनुषकी प्रत्यक्षा सुधार कर कर्ण पर नाराच, नालीक, वराहकर्ण क्षुर, अञ्जलिक और अर्धचन्द्र आदि बाणोंकी झड़ी लगा दी। किंतु अर्जुन जो-जो बाण उस पर छोड़ते थे,

कर्ण उसको नष्ट कर डालता था। उसके बाद  अर्जुन ने अग्नेयास्त्र का प्रहार किया। इससे पृथ्वीसे लेकर आकाश तक आगकी ज्वाला फैल गयी। योद्धाओं के वस्त्र जलने लगे, वे रणसे भाग चले। जैसे जंगल के बीच बाँसका वन जलते समय जोर-जोरसे चटखने की आवाज करता है, उसी तरह आगकी लपटमें झुलसते हुए सैनिकोंका भयंकर आर्तनाद होने लगा।

आग्नेयास्त्रको बढ़ते देख उसे शान्त करने के लिये कर्णने वारुणास्त्र का प्रयोग किया। उससे वह आग बुझ गयी। उस समय मेघों की घटा घिर आयी और चारों दिशाओं में अंधेरा छा गया। सब ओर पानी-ही-पानी नजर आने लगा। तब अर्जुन ने अपने अस्त्र से  कर्ण के छोड़े हुए वारुणास्त्रको शान्त कर दिया; बादलोंकी वह घटा छिन्न-भिन्न हो गयी। तत्पश्चात् उन्होंने गाण्डीव धनुष, उसकी प्रत्यंचा  तथा बाणों को स्मरण  करके अत्यन्त प्रभावशाली ऐन्द्रास्त्र बज्रको प्रकट किया। उससे क्षुरप, अञ्जलिक, अर्धचन्द्र, नालीक, नाराच और वराहकर्ण आदि तीखे अस्त्र हजारों की संख्या में  छूटने लगे। उन अस्त्रोंसे कर्णके सारे आङ्ग, घोड़े, धनुष, दोनों पहिये और ध्वजाएँ छतिग्रस्त हो  गयीं। उस समय कर्ण का शरीर बाणोंसे आच्छादित होकर खूनसे लथपथ हो रहा था, क्रोध के मारे उसकी आँखें बदल गयीं।

 अतः उसने भी समुद्र के समान गर्जना करनेवाले भार्गवास्त्रको प्रकट किया और अर्जुन के महेन्द्रास्त्रसे प्रकट हुए बाणोंके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। इस प्रकार अपने अखसे शत्रुके अख को दबाकर कर्णने पाण्डव-सेनाके रथी, हाथी सवार और पैदलोंका संहार आरम्भ किया। भार्गवास्त्र के  प्रभावसे जब कर्ण सभी को  पीड़ित करने लगा तो वे भी क्रोध में भरकर उस पर टूट पड़े और चारों ओर से तीखे बाण मारकर उसे बींधने लगे। किंतु सूत पुत्रने पाञ्चालोंके रथी, हाथीसवार और घुड़सवारोंके समुदायोंको अपने बाणोंसे विदीर्ण कर डाला; वे चीखते-चिल्लाते हुए प्राण त्यागकर धराशायी हो गये। 

उस समय आपके सैनिक कर्णकी विजय समझकर सिंहनाद करने और ताली पीटने लगे। यह देख भीमसेन क्रोध में भरकर अर्जुनसे बोले'विजय! धर्म की अवहेलना करनेवाले इस पापी कर्णने | आज तुम्हारे सामने ही पाञ्चा लोंके प्रधान-प्रधान वीरोंको कैसे मार डाला? तुम्हें तो कालिकेय नामक दानव भी नहीं परास्त कर सके, साक्षात्  महादेवजीसे तुम्हारी हाथापाई हो चुकी है। 

फिर भी इस सूत पुत्रने तुम्हें पहले ही बाण मारकर कैसे छतिग्रस्त कर  डाला ? तुम्हारे चलाये हुए बाणोंको इसने नष्ट कर दिया ! यह तो मुझे एक अचंभेकी बात मालूम हो रही है। अरे ! सभामें द्रौपदीको जो कष्ट दिये गये हैं, उनको याद करो; इस पापीने निर्भय होकर जो हमलोगों को नपुंसक कहा तथा तीखी और कठोर बातें सुनायीं, उन्हें भी स्मरण करो। इन सारी बातोंको ध्यानमें रखकर शीघ्र ही कर्ण का नाश कर डालो। तुम इतनी लापरवाही क्यों कर रहे हो? यह लापरवाही का समय नहीं है।'

Karna And Arjuna fight

तदनन्तर श्रीकृष्णने भी अर्जुनसे कहा-'वीरवर ! यह क्या बात है? तुमने जितने बार प्रहार किये, कर्ण ने प्रत्येक बार तुम्हारे प्रहारो को नष्ट कर दिया। आज तुम पर कैसा मोह छा रहा है? ध्यान नहीं देते? ये तुम्हारे शत्रु कौरव कितने हर्षमें भरकर गरज रहे हैं। जिस धैर्य से तुमने प्रत्येक युगमें भयंकर राक्षसों को मारा और दम्भोद्धव नामक असुरों का विनाश किया है, उसी धैर्य से आज कर्ण को भी नष्ट करो।

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