महामृत्युंजय की रचना कैसे हुइ थी? | मार्कण्डेय ऋषि की तपस्या की कहानी

क्या आपको पता है की ,महामृत्युंजय की रचना कैसे हुइ थी और इस  मंत्र के रचयिता कौन है। 

मार्कण्डेय ऋषि की तपस्या की कहानी 

महामृत्युंजय मंत्र की रचना करनेवाले मार्कंडेय ऋषि है। मार्कंडेय ऋषि , तपस्वी और तेजस्वी "मृकण्ड "ऋषि के पुत्र थे। मृकण्ड ऋषि ने पुत्र प्राप्ति के लिए बहुत तपस्या की। बहुत तपस्या की बाद मृकण्ड ऋषि के यहां संतान के रूप में एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम उन्होंने  मार्कंडेय रखा। लेकिन बच्चे का भविष्य देखकर ज्योतिषियों ने कहा कि यह शिशु अल्पायु है। ज्योतिषियों ने बताया की मार्कंडेय  की उम्र मात्र 16 वर्ष है। 

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||

मार्कण्डेय की बढ़ती उम्र को देखकर उनके पिता निरंतर चिंतित रहने लगे। एक दिन मार्कण्डेय ने अपने पिता से उनकी चिंता का कारण पूछा जिस पर मृकंडू ऋषि ने अपने पुत्र मार्कण्डेय से कहा की भगवान शिव के वरदान के अनुसार तुम अल्पायु हो और 16 वर्ष की आयु में ही तुम मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। यही मेरी चिंता का कारण है।  मृकण्ड ऋषि ने शिवजी,की पूजा का बीजमंत्र देते हुए कहा कि ,शिव ही तुम्हें मृत्यु के भय से मुक्त कर सकते हैं। तब मार्कंडेय ऋषि अपने बल अवस्था से ही  शिव मंदिर में बैठकर शिव साधना शुरू कर दी। 


पिता द्वारा चिंता बताने पर भी मार्कण्डेय बिल्कुल भी विचलित नहीं हुए और भगवान शिव पर अटूट विश्वास रखते हुए निरंतर उनकी पूजा करने लगे। जिस दिन उनकी मर्त्यु निश्चित थी, उस दिन भी वे शिव की पूजा में ही व्यस्त थे। 

ऋषि मार्कण्डेय पूरे समर्पण भाव के साथ शिव की पूजा में लीन थे जब यमदूत उन्हें लेने आए तो वह उनकी पूजा में विघ्न डाल पाने में सफल नहीं हुए। यमदूत को असफल होते देख स्वयं यमराज को मार्कण्डेय को लेने के लिए धरती पर आना पड़ा।

यमराज को अपने सामने उपस्थित देख मार्कण्डेय ऋषि ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और उसका जाप करने लगे। यमराज ने एक फंदा मार्कण्डेय की गर्दन में डालने की कोशिश की लेकिन वह फंदा शिवलिंग पर चला गया।
                                                                        
यमराज की इस हरकत पर शिव को क्रोध आ गया और वह अपने रौद्र रूप में यमराज के समक्ष उपस्थित हो गए। भगवान शिव को क्रोधित देख यमराज अत्यंत भयभीत हो गए और क्षमा याचना करने लगे। स्वयं भगवान शिव स्थिति को देखते हुए क यमराज से बोले कि मेरी शरण में बैठे भक्त को मृत्युदंड देने का विचार भी आपने कैसे किया? इस पर यमराज बोले- प्रभु मैं क्षमा चाहता हूं। विधाता ने कर्मों के आधार पर मृत्युदंड देने का कार्य मुझे सौंपा  है, मैं तो बस अपना दायित्व निभाने आया हूं। शिव ने बस एक शर्त पर यमराज को छोड़ा कि उनका ये भक्त ऋषि मार्कण्डेय अब से अमर रहेगा। इस पर शिव बोले मैंने मैं इस बालक को अमरता का वरदान दिया है। शिव शंभू के मुख से ये वचन सुनकर यमराज ने उन्हें प्रणाम किया और क्षमा मांगकर वहां से चले गए।
 
इस घटना के बाद से शिव को कालांतक भी कहा जाने लगा, जिसका अर्थ है काल यानि मौत का अंत करने वाला। सती पुराण में भी उल्लिखित हैं कि स्वयं पार्वती ने भी मार्कण्डेय ऋषि को यह वरदान दिया था कि केवल वही उनके वीर चरित्र को लिख पाएंगे। 

इस लेख को दुर्गा सप्तशती के नाम से जाना जाता है, जो कि मार्कण्डेय पुराण का एक अहम भाग है। भागवत पुराण के अनुसार एक बार भगवान नारायण मार्कण्डेय के पास एक ऋषि के रूप मे गए और उनसे वरदान मांगने को कहा। तब मार्कण्डेय ऋषि ने उनसे कहा कि वे पहले अपनी चमत्कारी शक्तियां उन्हें दिखाएं। 

महामृत्युंजय मंत्र जाप के फायदे  , आइये जानते है ,क्यों करते हैं महामृत्युंजय मंत्र का जाप

•जब कोई लम्बी बीमारी हो ,और कोई उपचार काम नहीं कर रहा हो तो इस मंत्र का जाप करें।  आपको इसके फल का प्रसाद जरूर मिलेगा। 
•अकाल मृत्यु, महारोग, ग्रहबाधा, ग्रहपीड़ा, सजा का भय, आदि जैसे स्थितियों में भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है। इसके चमत्कारिक लाभ देखने को मिलते हैं। इन सभी समस्याओं से मुक्ति के लिए महामृत्युंजय मंत्र या लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है।
•महामृत्युंजय मंत्र के महाशिवरात्रि पर अलावा वर्ष भर जपने से अकाल मृत्यु टलती है। 
•आरोग्य की प्राप्ति होती है। 
•यह मंत्र देश, काल और परिस्थिति के अनुसार हर स्थान पर शुभ फल देता है। 
•भयंकर से भयंकर बिमारी इस मंत्र के जाप और उपचार से ठीक हो जाते है। 

 तो इसके साथ ही महामृत्युंजय मंत्र की कथा और इसके फायदे समाप्त होते हैं। 
कोई मंत्र या स्तोत्र तभी काम आता है जब आपकी निष्ठा उसे मंत्र के प्रति अटूट हो। ऋषि मार्कण्डये की भक्ति ,सभी के लोए मिशाल है। 

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महामृत्युंजय की रचना कैसे हुइ थी



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