Maruti Stotra in Sanskrit | मारुति स्तोत्र

श्री मारुति स्तोत्र की रचना न तो वैदिक काल में हुई है और न ही प्राचीन युग में। इतिहासकारों के अनुसार, इसका निर्माण 17वीं शताब्दी में हुआ था। इसके रचयिता समर्थ गुरु रामदास थे, जो एक महान संत और वीर छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु थे। उनका जन्म महाराष्ट्र में हुआ था, और इसलिए उन्होंने इस स्तोत्र को मराठी भाषा में भी लिखा।

संस्कृत साहित्य में "स्तोत्र" का अर्थ है किसी देवी-देवता की स्तुति में रचित काव्य। ऐसा माना जाता है कि समर्थ गुरु रामदास भगवान हनुमान के परम भक्त थे। उनकी भक्ति और श्रद्धा के परिणामस्वरूप उन्होंने श्री मारुति स्तोत्र की रचना की। यह स्तोत्र भगवान हनुमान के प्रति उनकी अटूट आस्था और भक्ति का प्रतीक है।

मारुति स्तोत्र

भीमरूपी महारुद्रा, वज्र हनुमान मारुती।

वनारी अंजनीसूता, रामदूता प्रभंजना ।।1।।

महाबळी प्राणदाता, सकळां उठवीं बळें ।

सौख्यकारी शोकहर्ता, धूर्त वैष्णव गायका ।।2।।

दिनानाथा हरीरूपा, सुंदरा जगदंतरा।

पाताळ देवता हंता, भव्य सिंदूर लेपना ।।3।।

लोकनाथा जगन्नाथा, प्राणनाथा पुरातना ।

पुण्यवंता पुण्यशीला, पावना परतोषका ।।4।।

ध्वजांगे उचली बाहू, आवेशें लोटिला पुढें ।

काळाग्नी काळरुद्राग्नी, देखतां कांपती भयें ।।5।।

ब्रह्मांड माईला नेणों, आवळें दंतपंगती।

नेत्राग्नी चालिल्या ज्वाळा, भृकुटी त्राहिटिल्या बळें ।।6।।

पुच्छ तें मुरडिलें माथां, किरीटी कुंडलें बरीं।

सुवर्णकटीकासोटी, घंटा किंकिणी नागरा ।।7।।

ठकारे पर्वताऐसा, नेटका सडपातळू।

चपळांग पाहतां मोठें, महाविद्युल्लतेपरी ।।8।।

कोटिच्या कोटि उड्डाणें, झेपावे उत्तरेकडे ।

मंद्राद्रीसारिखा द्रोणू, क्रोधे उत्पाटिला बळें ।।9।।

आणिता मागुता नेला, गेला आला मनोगती ।

मनासी टाकिलें मागें, गतीस तूळणा नसे ।।10।।

अणूपासोनि ब्रह्मांडा, येवढा होत जातसे।

तयासी तुळणा कोठें, मेरुमंदार धाकुटें ।।11।।

ब्रह्मांडाभोंवते वेढे, वज्रपुच्छ घालूं शके।

तयासि तूळणा कैचीं, ब्रह्मांडीं पाहतां नसे ।।12।।

आरक्त देखिलें डोळां,गिळीलें सूर्यमंडळा ।

वाढतां वाढतां वाढे, भेदिलें शून्यमंडळा ।।13।।

धनधान्यपशुवृद्धी, पुत्रपौत्र समग्रही ।

पावती रूपविद्यादी, स्तोत्र पाठें करूनियां ।।14।।

भूतप्रेतसमंधादी, रोगव्याधी समस्तही ।

नासती तूटती चिंता, आनंदें भीमदर्शनें ।।15।।

हे धरा पंधराश्लोकी, लाभली शोभली बरी।

दृढदेहो निसंदेहो, संख्या चंद्रकळागुणें ।।16।।

रामदासी अग्रगण्यू, कपिकुळासी मंडण।

रामरूपी अंतरात्मा, दर्शनें दोष नासती ।।17।।

।। इति श्रीरामदासकृतं संकटनिरसनं मारुतिस्तोत्रं संपूर्णम् ।।

मारुति स्तोत्र में क्या है?

मारुति स्तोत्र, जिसे समर्थ गुरु रामदास द्वारा रचित कहा गया है, भगवान हनुमान की स्तुति में एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है। यह भक्तों के लिए उनकी भक्ति, आस्था, और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाने का माध्यम है।

मारुति स्तोत्र का संक्षेप में विवरण

मारुति स्तोत्र के पहले 13 श्लोकों में भगवान हनुमान के अद्वितीय गुणों, उनके दिव्य स्वरूप, और उनके पराक्रम का वर्णन किया गया है। ये श्लोक उनकी शक्ति, ज्ञान, और अटूट भक्ति को उजागर करते हैं। इसके बाद के अंतिम चार श्लोकों में चरणश्रुति (पाठ करने के लाभ) का उल्लेख किया गया है।

मारुति स्तोत्र का पाठ करने के लाभ

जो भक्त नियमित रूप से मारुति स्तोत्र का पाठ करते हैं, उन्हें कई आध्यात्मिक और भौतिक लाभ मिलते हैं:

  1. संकटों से मुक्ति: हनुमान जी के आशीर्वाद से सभी परेशानियां, चिंताएं और मुश्किलें समाप्त हो जाती हैं।
  2. दुश्मनों पर विजय: यह स्तोत्र पाठक को उनके शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों से बचाने में सहायक होता है।
  3. मनोकामना पूर्ति: ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र का 1100 बार पाठ करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
  4. आध्यात्मिक शक्ति का विकास: नियमित पाठ से भक्त की आस्था और भक्ति में वृद्धि होती है।

मारुति स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

मारुति स्तोत्र का पाठ हनुमान जी की कृपा और आशीर्वाद पाने का एक प्रभावी साधन है। इसे सही विधि और श्रद्धा से करना आवश्यक है। नीचे दिए गए चरणों का पालन करते हुए आप इसका पाठ कर सकते हैं:


पाठ की तैयारी

  1. स्नान और शुद्धता: पाठ से पहले स्नान करें और शरीर व मन को शुद्ध करें।
  2. पूजा स्थान: पाठ के लिए एक स्वच्छ और शांत स्थान चुनें, जहां भगवान हनुमान की प्रतिमा या चित्र रखा हो।
  3. सामग्री:
    • हनुमान जी को लाल फूल, चंदन, और सिंदूर अर्पित करें।
    • दीपक और धूप जलाएं।
    • भोग के लिए गुड़ और चने अर्पित करें।

पाठ करने की विधि

  1. आरंभिक प्रार्थना: पाठ शुरू करने से पहले भगवान हनुमान और समर्थ गुरु रामदास को नमन करें।
  2. शुद्ध उच्चारण:
    • मारुति स्तोत्र के श्लोकों का उच्चारण सही ढंग से करें।
    • इसका पाठ ध्यान और भक्ति के साथ करें।
  3. समय:
    • प्रातःकाल (सुबह) और संध्या (शाम) का समय सबसे उत्तम है।
    • मंगलवार और शनिवार को पाठ का विशेष महत्व है।
  4. संख्या:
    • आप इसे एक बार, सात बार, या 11 बार नियमित रूप से पढ़ सकते हैं।
    • मनोकामना पूर्ति के लिए 1100 बार पाठ करने की परंपरा भी है।

पाठ के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें

  • एकाग्रता: पाठ करते समय मन को शांत और एकाग्र रखें।
  • हनुमान जी का ध्यान: पाठ के दौरान भगवान हनुमान के स्वरूप और उनकी लीला का स्मरण करें।
  • श्रद्धा और विश्वास: पाठ करते समय श्रद्धा और विश्वास बनाए रखें।

पाठ के बाद क्या करें 

  1. आरती करें: पाठ के बाद हनुमान चालीसा या आरती गाएं।
  2. प्रसाद वितरण: अर्पित भोग का प्रसाद सभी को बांटें।
  3. शांति और साधना: कुछ देर ध्यान करें और भगवान हनुमान से अपनी मनोकामना प्रकट करें।

मारुति स्तोत्र पाठ के फायदे

  • सभी प्रकार की समस्याओं और बाधाओं से मुक्ति।
  • शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों पर विजय।
  • मानसिक शांति और आत्मबल में वृद्धि।
  • भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार।

नोट: मारुति स्तोत्र का पाठ केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि भगवान हनुमान के प्रति श्रद्धा और सेवा के भाव से करना चाहिए। इससे न केवल आपकी इच्छाएं पूर्ण होंगी, बल्कि आपकी भक्ति भी प्रबल होगी।

मारुति स्तोत्र


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