हिन्दू साहित्य के अनुसार मांस खाना क्यों वर्जित है
हिन्दू धर्म के मूल सिद्धांतों को भूलकर लोग "पंडित और एस्ट्रोलॉजर" की बातों में आकर हंदु धर्म को भूल गए हैं। हिन्दू धर्म ग्रंथो में कभी भी मांस खाने को प्रोत्साहन नहीं दिया गया है | मैं इस ब्लॉग के माध्यम से चाहूंगा की लोग यह जाने की हमारे धर्म क्या कहते हैं। हिन्दू धर्म में सभी जीवों को बराबर का महत्व दिया गया गया है।
अगर आप सभी को सनातन धर्म का पालन करना है को पूर्ण रूप से करें नहीं तो सनातनी केवल कहने के लिए नहीं बने।
यजुर्वेद के महावाक्य में एक बहुत ही अच्छी बात कही गयी है : "अहं ब्रह्मस्मि "
“अहं ब्रह्मस्मि” (मैं ब्रह्म हूँ ) अर्थात अपने अंदर परमात्मा को अनुभव करता हूँ। मेरे अंदर ब्रह्मांड की सारी शक्तियां निहित है मैं ब्रह्मा का अंश हूँ।ध्यान रहे ब्रम्हा मतलब ब्रम्हा भगवान् जी नहीं बल्कि ब्राह्मण से है(जो अदृश्य है ) इस गोपनीय तथ्य का वरण करके यदि मनुष्य अपने जीवन के परम स्थिति का अनुभव कर लें तो उसका जीवन सफलता पूर्वक निर्वाह हो जायेगा।
अहं ब्रह्मस्मि का भावार्थ – जिस प्रकार एक हिरन अपने अंदर छुपे कस्तूरी की खुशबू को इधर उधर ढूढता है मगर कस्तूरी तो उसके ही अंदर मौजूद होता है। मैं भी हिरन की भांति अपने अंदर छिपे परमात्मा को इधर उधर ढूंढता फिरता है मगर वह परमात्मा तो मेरी आत्मा में वास करता है।
गाय के प्रति सम्मान हिंदू धर्म का एक मुख्य सिद्धांत है। ऐसे लाखों बीमार हिंदू हैं जो बहस करने के लिए सशक्त नहीं हैं क्योकि उन्हें सनातन धर्म का ज्ञान नहीं है। और इसलिए चुपचाप आत्मसमर्पण कर रहे हैं। गाय ही नहीं वेद में सभी पशुवो को बराबर का महत्व दिया गया है।
अथर्वेद 6.140.2 में कहा गया है :
भागवत गीता के 17:7 में कहा गया है |
आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः।
यज्ञस्तपस्तथा दानं तेषां भेदमिमं श्रृणु।।17.7।।
आहार भी सबको तीन प्रकारका प्रिय होता है और वैसे ही यज्ञ? दान और तप भी तीन प्रकारके होते हैं अर्थात् शास्त्रीय कर्मोंमें भी तीन प्रकारकी रुचि होती है? तू उनके इस भेदको सुन।
भागवत गीता के 17:8 में कहा गया है |
आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।17.8।।
आयु? सत्त्वगुण? बल? आरोग्य? सुख और प्रसन्नता बढ़ानेवाले? स्थिर रहनेवाले? हृदयको शक्ति देनेवाले? रसयुक्त तथा चिकने -- ऐसे आहार अर्थात् भोजन करनेके पदार्थ सात्त्विक मनुष्यको प्रिय होते हैं।
कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः।
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।।17.9।।
अति कड़वे? अति खट्टे? अति नमकीन? अति गरम? अति तीखे? अति रूखे और अति दाहकारक आहार अर्थात् भोजनके पदार्थ राजस मनुष्यको प्रिय होते हैं? जो कि दुःख? शोक और रोगोंको देनेवाले हैं।
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्।।17.10।।
जो भोजन अधपका? रसरहित? दुर्गन्धित? बासी और उच्छिष्ट है तथा जो महान् अपवित्र भी है? वह तामस मनुष्यको प्रिय होता है।
श्री कृष्ण ने बहुत अच्छे से सभी प्रकार के भोजन के प्रदार्थो के बारे में बताया है.
इसलिए यह हम पर निर्भर करता है कि हमें क्या खाना है जो हमारे दिमाग को स्थिर रख सके
भागवत गीता के 17:04 में कहा गया है |
सात्विक पुरुष देवों को पूजते हैं, राजस पुरुष यक्ष और राक्षसों को तथा अन्य जो तामस मनुष्य हैं, वे प्रेत और भूत गणों को पूजते हैं|
आइये हमलोग देखे की हमारे धर्म ग्रन्थ क्या कहते है |
अथर्वेद 6.140.2 में कहा गया है :
आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः।
यज्ञस्तपस्तथा दानं तेषां भेदमिमं श्रृणु।।17.7।।
आहार भी सबको तीन प्रकारका प्रिय होता है और वैसे ही यज्ञ? दान और तप भी तीन प्रकारके होते हैं अर्थात् शास्त्रीय कर्मोंमें भी तीन प्रकारकी रुचि होती है? तू उनके इस भेदको सुन।
आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।17.8।।
आयु? सत्त्वगुण? बल? आरोग्य? सुख और प्रसन्नता बढ़ानेवाले? स्थिर रहनेवाले? हृदयको शक्ति देनेवाले? रसयुक्त तथा चिकने -- ऐसे आहार अर्थात् भोजन करनेके पदार्थ सात्त्विक मनुष्यको प्रिय होते हैं।
भागवत गीता के 17:9 में कहा गया है |
कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः।
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।।17.9।।
अति कड़वे? अति खट्टे? अति नमकीन? अति गरम? अति तीखे? अति रूखे और अति दाहकारक आहार अर्थात् भोजनके पदार्थ राजस मनुष्यको प्रिय होते हैं? जो कि दुःख? शोक और रोगोंको देनेवाले हैं।
भागवत गीता के 17:10 में कहा गया है |
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्।।17.10।।
जो भोजन अधपका? रसरहित? दुर्गन्धित? बासी और उच्छिष्ट है तथा जो महान् अपवित्र भी है? वह तामस मनुष्यको प्रिय होता है।
श्री कृष्ण ने बहुत अच्छे से सभी प्रकार के भोजन के प्रदार्थो के बारे में बताया है.
इसलिए यह हम पर निर्भर करता है कि हमें क्या खाना है जो हमारे दिमाग को स्थिर रख सके
भागवत गीता के 17:04 में कहा गया है |
सात्विक पुरुष देवों को पूजते हैं, राजस पुरुष यक्ष और राक्षसों को तथा अन्य जो तामस मनुष्य हैं, वे प्रेत और भूत गणों को पूजते हैं|
तो यह स्पष्ट है कि जो लोग सात्विक भोजन खाते है वो भगवान् को ज्यादा प्रिय होते हैं|
मांस खाने वालों को हमेशा वैदिक साहित्य में नीचे देखा गया है। उन्हें रक्षस, पिसाच आदि के रूप में जाना जाता है|
इसलिए हमें आशा है आपलोग भी श्री कृष्णा के दिखाए हुए रास्ते का अनुसरण करेंगे |
1 Comments
Brass, on the other hand|however|then again}, is the most conductive of these three metals. Hopefully, this provides you a better thought of the three different types of|several types of|various duvet cover kinds of} sheet metal and the way they differ. Stainless metal merchandise have the next degree of stain, corrosion, and rust resistance than ordinary metal.
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