गणेश कवच PDF | Ganesh Kavach PDF in Hindi

गणेश कवच प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश जी का एक बहुत ही प्रभावशाली स्तोत्र है।गणेश जी को विघ्न विनाशक के रूप में जाना जाता है। शास्त्रों में श्री गणेश कवच का उल्लेख है। गणेश कवच को सिद्ध कर लेने मात्र से मनुष्‍य  के लिए हर काम संभव हो जाता है । गणेश कवच भी नारायण कवच ही जैसा प्रभावशाली कवच है। 

शनैश्‍चर देव  के विनयपूर्ण आग्रह के बाद भगवान श्री विष्‍णु ने उन्हें गणेश कवच की दीक्षा दी थी ।भगवान श्री विष्‍णु ने कहा - की अगर कोई व्यक्ति गणेश कवच का जाप दस लाख बार कर लेगा तो गणेश कवच सिद्ध हो जाता है।

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गणेश कवच के फायदे निम्नलिखित है।  गणेश जी को प्रथम पूज्य माना गया है, अतः किसी भी प्रकार के पूजन, व्रत तथा अनुष्ठान के आरंभ में गणेश जी का पूजन करना अनिवार्य है।

वैसे तो इस कवच का पाठ प्रतिदिन करना चाहिए, लेकिन यदि आप प्रतिदिन इस कवच का पाठ करने में असमर्थ हैं, तो बुद्धवार के दिन इसका पाठ अवश्य करें। गणेश जी बुद्धि तथा ज्ञान के देवता हैं, इसलिए उनके पूजन से व्यक्ति को बुद्धि तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है। गणेश जी के पूजन से ऋण से मुक्ति मिलती है।

 || गणेश कवचं ||

श्रीगणेशाय नमः ॥

गौर्युवाच ।

एषोऽतिचपलो दैत्यान्बाल्येऽपि नाशयत्यहो ।

अग्रे किं कर्म कर्तेति न जाने मुनिसत्तम ॥ १॥

दैत्या नानाविधा दुष्टाः साधुदेवद्रुहः खलाः ।

अतोऽस्य कण्ठे किञ्चित्त्वं रक्षार्थं बद्धुमर्हसि ॥ २॥

मुनिरुवाच ।

ध्यायेत्सिंहहतं विनायकममुं दिग्बाहुमाद्ये युगे

त्रेतायां तु मयूरवाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम् ।

द्वापारे तु गजाननं युगभुजं रक्ताङ्गरागं विभुम्

तुर्ये तु द्विभुजं सिताङ्गरुचिरं सर्वार्थदं सर्वदा ॥ ३॥

विनायकः शिखां पातु परमात्मा परात्परः ।

अतिसुन्दरकायस्तु मस्तकं सुमहोत्कटः ॥ ४॥

ललाटं कश्यपः पातु भृयुगं तु महोदरः ।

नयने भालचन्द्रस्तु गजास्यस्त्वोष्ठपल्लवौ ॥ ५॥

जिह्वां पातु गणक्रीडश्चिबुकं गिरिजासुतः ।

वाचं विनायकः पातु दन्तान् रक्षतु विघ्नहा ॥ ६॥

श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां चिन्तितार्थदः ।

गणेशस्तु मुखं कण्ठं पातु देवो गणञ्जयः ॥ ७॥

स्कन्धौ पातु गजस्कन्धः स्तनौ विघ्नविनाशनः ।

हृदयं गणनाथस्तु हेरंबो जठरं महान् ॥ ८॥

धराधरः पातु पार्श्वौ पृष्ठं विघ्नहरः शुभः ।

लिङ्गं गुह्यं सदा पातु वक्रतुण्डो महाबलः ॥ ९॥

गणक्रीडो जानुसङ्घे ऊरु मङ्गलमूर्तिमान् ।

एकदन्तो महाबुद्धिः पादौ गुल्फौ सदाऽवतु ॥ १०॥

क्षिप्रप्रसादनो बाहू पाणी आशाप्रपूरकः ।

अङ्गुलीश्च नखान्पातु पद्महस्तोऽरिनाशनः ॥ ११॥

 

सर्वाङ्गानि मयूरेशो विश्वव्यापी सदाऽवतु ।

अनुक्तमपि यत्स्थानं धूम्रकेतुः सदाऽवतु ॥ १२॥

आमोदस्त्वग्रतः पातु प्रमोदः पृष्ठतोऽवतु ।

प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेयां सिद्धिदायकः ॥१३॥

दक्षिणास्यामुमापुत्रो नैरृत्यां तु गणेश्वरः ।

प्रतीच्यां विघ्नहर्ताऽव्याद्वायव्यां गजकर्णकः ॥ १४॥

कौबेर्यां निधिपः पायादीशान्यामीशनन्दनः ।

दिवाऽव्यादेकदन्तस्तु रात्रौ सन्ध्यासु विघ्नहृत् ॥ १५॥

राक्षसासुरवेतालग्रहभूतपिशाचतः ।

पाशाङ्कुशधरः पातु रजःसत्त्वतमः स्मृतिः ॥ १६॥

ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मीं च लज्जां कीर्ति तथा कुलम् ।

वपुर्धनं च धान्यं च गृहान्दारान्सुतान्सखीन् ॥ १७॥

सर्वायुधधरः पौत्रान् मयूरेशोऽवतात्सदा ।

कपिलोऽजादिकं पातु गजाश्वान्विकटोऽवतु ॥ १८॥

भूर्जपत्रे लिखित्वेदं यः कण्ठे धारयेत्सुधीः ।

न भयं जायते तस्य  यक्षरक्षःपिशाचतः ॥ १८॥

त्रिसन्ध्यं जपते यस्तु वज्रसारतनुर्भवेत् ।

यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन फलं लभेत् ॥ २०॥

युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं चाप्नुयाद्द्रुतम् ।

मारणोच्चाटकाकर्षस्तम्भमोहनकर्मणि ॥ २१॥

सप्तवारं जपेदेतद्दिनानामेकविंशतिम् ।

तत्तत्फलवाप्नोति साधको नात्रसंशयः ॥२२॥

एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि यः ।

कारागृहगतं सद्योराज्ञा वध्यं च मोचयेत् ॥ २३॥

राजदर्शनवेलायां पठेदेतत्त्रिवारतः ।

स राजसं वशं नीत्वा प्रकृतीश्च सभां जयेत् ॥ २४॥

इदं गणेशकवचं कश्यपेन समीरितम् ।

मुद्गलाय च ते नाथ माण्डव्याय महर्षये ॥ २५॥

मह्यं स प्राह कृपया कवचं सर्वसिद्धिदम् ।

न देयं भक्तिहीनाय देयं श्रद्धावते शुभम् ॥ २६॥

यस्यानेन कृता रक्षा न बाधास्य भवेत्क्वचित् ।

राक्षसासुरवेतालदैत्यदानवसम्भवा ॥ २७॥

इति श्रीगणेशपुराणे उत्तरखण्डे बालक्रीडायां

षडशीतितमेऽध्याये गणेशकवचं सम्पूर्णम् ॥

॥ इति श्री गणेशपुराणे श्री गणेश कवचं संपूर्णम् ॥

गणेश कवच की विधि इस प्रकार है। 

इस कवच को भोजपत्र पर लिखकर जो बुद्धिमान साधक अपने कंठ पर धारण करता है, उसको यक्ष, राक्षस तथा पिशाच आदि का कभी भय नहीं होगा तथा इस कवच को जो कोई साधक तीनों संध्याओं में पढ़ता है, उसका शरीर वज्रवत कठोर हो जाता है। जो साधक यात्रा काल में इस कवच को पढ़ें तो सभी कार्य निर्विघ्न सफल हो जाते हैं। 

युद्ध काल में इस कवच का पाठ करने से विजय की प्राप्ति होती है। 

इस कवच का 7 बार 21 दिन तक जाप करने से मारण, उच्चाटन, आकर्षण, स्तंभन, मोहन आदि सिद्धियों का फल साधक को प्राप्त होता है। 

जो कोई व्यक्ति जेल में इस कवच को 21 दिनों में हर रोज 21 बार पढ़ता है, वह जेल के बंधन से छूट जाता है। 

यदि कोई साधक राजा के दर्शन के समय इस कवच को तीन बार पढ़ें तो राजा और सभा सभी वश में हो जाते हैं। 

यह गणेश कवच कश्यप ने मुद्गल को बताया था मुद्गल ने महर्षि माण्डव्य को बताया था।      कृपा वश मैंने सर्व सिद्धि देने वाले कवच को बताया है।  

यह कवच पापी को नहीं देना चाहिए। श्रद्धावान को ही बतायें। 

इस कवच के साधक से राक्षस, असुर, बेताल, दैत्य, दानव से उत्पन्न सभी प्रकार की बाधा भाग जाती है।

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