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त्रिकाल संध्या के श्लोक | त्रिकाल संध्या विधि

त्रिकाल संध्या का प्रारंभ प्रायः आचमन और शुद्धि मंत्रों से होता है, फिर संकल्प और संध्या मंत्रों का पाठ किया जाता है। यहाँ मैं आपको एक पारंपरिक आरंभिक श्लोक दे रहा हूँ, जिससे त्रिकाल संध्या शुरू की जाती है:

त्रिकाल संध्या आरंभ श्लोक

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥

(अर्थ: चाहे मनुष्य अपवित्र हो या पवित्र, या किसी भी अवस्था में क्यों न हो, यदि वह भगवान् विष्णु का स्मरण करता है तो वह भीतर और बाहर दोनों से शुद्ध हो जाता है।)

संध्या का अर्थ और महत्व

“संध्या” का अर्थ है मिलन या संधि काल। यह वह समय है जब दिन और रात आपस में मिलते हैं। जैसे—

  • सुबह सूर्योदय से पहले का समय,

  • दोपहर का मध्य बिंदु,

  • और सूर्यास्त का समय।

इन विशेष क्षणों को संध्या काल कहा जाता है।

अगर सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो पूरे 24 घंटों में आठ संधियाँ होती हैं, जिन्हें अष्ट प्रहर कहा जाता है। इन्हीं अष्ट प्रहरों में से तीन मुख्य संधियाँ— उषाकाल, मध्यान्ह और सायंकाल— सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इन्हें ही त्रिसंध्या, त्रिकाल संध्या या संध्योपासना कहा जाता है।इस पोस्ट में हमलोग  त्रिकाल संध्या के श्लोक और और त्रिकाल संख्या विधि के बारे में जानेंगे। 

यहाँ त्रिकाल का अर्थ है— सुबह, दोपहर और शाम। 

त्रिकाल संध्या के समय

  1. उषाकाल (प्रातःकाल): सूर्योदय से कुछ समय पहले का क्षण।

  2. मध्यान्ह (दोपहर): लगभग 12 बजे का समय।

  3. सायंकाल (संध्याकाल): सूर्यास्त से लेकर रात की शुरुआत तक का समय।

शास्त्रों में लिखा है, हमें दिन में तीन महत्वपूर्ण समय पर प्रभु को अवश्य याद करना चाहिए। यह तीन प्रकार के दान होते हैं।

  1. स्मृति दान (उषाकाल (प्रातःकाल): सूर्योदय से कुछ समय पहले का क्षण।)
  2. शक्ति दान (मध्यान्ह (दोपहर): लगभग 12 बजे का समय )।
  3. शान्ति दान (सायंकाल (संध्याकाल): सूर्यास्त से लेकर रात की शुरुआत तक का समय।)

1.स्मृति दान (Smriti Daan Shloka)

स्मृति दान प्रातः समय पर होता है। प्रातः उठते ही प्रभु को याद करते हुए, अपने कर अर्थात हाथों को देख कर यह श्लोक बोलने चाहिए,

स्मृति दान के श्लोक 

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।

करमध्ये तु गोविन्द: प्रभाते कर दर्शनम॥

समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमंडले।

विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे॥

वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमद्रनम्।

देवकीपरमानन्दम कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥

2.शक्ति दान (Shakti Daan Shloka)

शक्ति दान भोजन के समय होता है। भोजन ग्रहण करने से पूर्व, प्रभु को याद करते हुए यह श्लोक बोलने चाहिए। 

शक्ति दान के श्लोक 

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्विषैः।

भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचम्त्यात्मकारणात्॥

यत्करोषि यदश्नासि यज्जहोषि ददासि यत्।

यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्॥

अहं वैश्र्वानरो भूत्वा ग्राणिनां देहमाश्रितः।

प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।।

ॐ सह नाववतु सह नौ भनक्तु सह वीर्यं करवावहै।

तेजस्वि नावघीतमस्तु मा विहिषावहै।।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

3.शान्ति दान (Shanti Daan Shloka)

शान्ति दान सोने के समय होता है। सोने से पूर्व, प्रभु को याद करते हुए यह श्लोक बोलने चाहिए। 

शांति दान श्लोक 

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।

प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥

करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं वा

श्रवणनयनजं वा मानसं वाअपराधम्।

विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व

जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शंभो॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव

त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥

त्रिकाल संध्या के श्लोक

कैसे करें त्रिकाल संध्या?

त्रिकाल संध्या केवल एक पूजा-विधि नहीं, बल्कि शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करने की साधना है। इसे करने का सरल तरीका इस प्रकार है:

  1. सबसे पहले आचमन, प्राणायाम, अंग-प्रक्षालन और अंदर-बाहर की शुद्धि की भावना करें।

  2. प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

  3. पूजा स्थल पर कुशा या आसन पर बैठकर आचमन और प्राणायाम करें।

  4. अब गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करें।

  5. इसके बाद अपने इष्ट देव का ध्यान या पूजा करें।

  6. कुछ लोग इस समय ईश्वर की निराकार रूप में प्रार्थना करते हैं, वहीं कुछ लोग पूजा, आरती और कीर्तन को महत्व देते हैं।

  7. संध्योपासना के चार प्रमुख रूप हैं— प्रार्थना, ध्यान, कीर्तन और पूजा-आरती। जो भी साधना आपके मन को प्रिय लगे, वही करें।

संधिवंदन क्यों है जरूरी?

संधिकाल (दिन-रात के मिलन का समय) को शास्त्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस समय शुभ और अशुभ दोनों प्रकार की शक्तियाँ सक्रिय होती हैं। इसलिए इस दौरान कुछ कार्य वर्जित बताए गए हैं, जैसे—

  • भोजन करना

  • नींद लेना

  • क्रोध करना

  • यात्रा पर निकलना

  • लेन-देन या झगड़ा करना

  • चौखट पर खड़े रहना

  • रोना या शुभ कार्य करना

इनसे बचकर संधिवंदन करने से वातावरण और मन दोनों शुद्ध रहते हैं।

त्रिकाल संध्या से लाभ

  1. शारीरिक और मानसिक थकान मिटती है।

  2. जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बढ़ती है।

  3. ग्रहदोष, कालसर्पदोष और पितृदोष का प्रभाव कम होता है।

  4. बुद्धि सही दिशा में चलती है और निर्णय शक्ति बढ़ती है।

  5. साधक को आलौकिक शक्तियों का संरक्षण और सहयोग मिलता रहता है।

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