आरती का अर्थ केवल दीप जलाकर घुमाना नहीं, बल्कि यह परमात्मा के प्रकाश को अपने भीतर समाहित करने की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक विधि है।
"श्रावण मास में शिव मंदिरों और घरों में शिव आरती की मधुर ध्वनि गूंजती है। रुद्राभिषेक के बाद आरती का आयोजन होता है, लेकिन एक सवाल अक्सर मन में उठता है: आरती करते समय हाथों को किस क्रम में घुमाना चाहिए? क्या इसका कोई सही तरीका है? कलयुग में केवल दीप घुमाना पर्याप्त नहीं है। आरती के पीछे एक गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व छिपा है।
आरती का सार | Method of Arti
आरती केवल एक रस्म नहीं, बल्कि परमात्मा के समक्ष अपनी ऊर्जा समर्पित करने और उनके दिव्य तेज को आत्मसात करने की प्रक्रिया है। आरती का थाल घुमाना महज परंपरा नहीं, बल्कि शरीर के तीन प्रमुख चक्रों—आज्ञा (भ्रूमध्य), अनाहत (हृदय) और मणिपुर (नाभि) चक्रों को ऊर्जावान करने की विधि है।
आरती करने का सही तरीका
चाहे आप भगवान शिव, विष्णु, गणेश या किसी अन्य देवता की आरती करने का सौभाग्य प्राप्त करें, इसे निम्नलिखित तरीके से करें ताकि इसका आध्यात्मिक महत्व पूर्ण हो:
1. आरती का थाल पकड़ें : थाल को दोनों हाथों से मजबूती से पकड़ें।
2. देवता के चक्र पर ध्यान केंद्रित करें
शिव जी के लिए आज्ञा चक्र (भ्रूमध्य) पर ध्यान दें।
विष्णु जी के लिए अनाहत चक्र (हृदय केंद्र) पर ध्यान दें।
गणेश जी के लिए मणिपुर चक्र (नाभि केंद्र) पर ध्यान दें।
3. थाल को कुछ क्षण स्थिर रखें : इससे आप देवता की ऊर्जा से जुड़ते हैं।
4.दाएं हाथ से थाल को इस क्रम में घुमाएं .
शिव जी के लिए: आज्ञा चक्र से शुरू करें, फिर अनाहत चक्र, मणिपुर चक्र और वापस आज्ञा चक्र पर लाएं।
विष्णु जी के लिए: अनाहत चक्र से शुरू करें, फिर मणिपुर चक्र, आज्ञा चक्र और वापस अनाहत चक्र पर लाएं।
गणेश जी के लिए: मणिपुर चक्र से शुरू करें, फिर अनाहत चक्र, आज्ञा चक्र और वापस मणिपुर चक्र पर लाएं।
इस क्रम में थाल घुमाने से यह ‘ॐ’ (ओंकार) की आकृति बनाता है। इस गति से तीनों चक्रों में ऊर्जा का प्रवाह होता है, जो न केवल भगवान के प्रति समर्पण का प्रतीक है, बल्कि आध्यात्मिक और शारीरिक ऊर्जा का जागरण भी करता है।
आरती का शास्त्रीय संदर्भ
शिव महापुराण (रुद्र संहिता) में उल्लेख है कि आरती चक्राकार होनी चाहिए ताकि ऊर्जा का प्रवाह बना रहे। स्कंद पुराण में कहा गया है: “आरत्या च प्रदक्षिणा देवं तन्मयः स्याद् भवेद् ध्रुवम्।”अर्थात, आरती के वृत्ताकार घूर्णन से भक्त का मन देवता में स्थिर होता है और उसके भीतर दिव्यता का संचार होता है।
इसलिए, श्रावण मास में शिव आराधना हो या किसी अन्य देवता की आरती, हाथों की गति के विज्ञान को समझें। आरती केवल थाल घुमाने की क्रिया नहीं, बल्कि चक्रों को ऊर्जावान करने और दिव्यता से जुड़ने का माध्यम है।
Articles Related to Scientific method of Aarti और प्रस्थान, वाहनों का महत्व एवं लाभ
0 Comments