Shiv Rudrashtakam | Shiv Rudrashtak Lyrics in Hindi

शिव रुद्राष्टकम रामचरित मानस से लिया गया स्तोत्र है।कोई भी साधक इस लयात्मक स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करें, तो वह शिवजी का कृपापात्र हो जाता है। यह स्तोत्र बहुत थोड़े समय में कण्ठस्थ हो जाता है। शिव को प्रसन्न करने के लिए यह रुद्राष्टक बहुत प्रसिद्ध तथा त्वरित फलदायी है।

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम 

ॐ नमः शिवायः

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌ ।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥

हिंदी में अर्थ – हे मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर शिव जी मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निज स्वरूप में स्थित और सभी गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाश रूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर मैं आपको भजता हूँ।॥१॥

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निराकारमोंकारमूलं तुरीयं, गिराघ्यानगोतीतमीशं गिरीशं गिरीशम् ।

करालं महाकाल कालं कृपालं, गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ।।

हिंदी में अर्थ – निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय यानी (तीनों गुणों से अतीत) वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।॥२॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा, लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।।

हिंदी में अर्थ – जो हिमाचल के समान गौरवर्ण और गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति और शोभा है, जिनके सिर पर सुन्दर गंगा नदी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चन्द्रमा और गले में सर्प  सुशोभित है।।

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चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ।।

हिंदी में अर्थ -जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं,  सुन्दर भ्रुकुटी और विशाल नेत्र हैं,  प्रसन्नमुख, नीलकंठ और दयालु हैं, सिंहचर्म का वस्त्र धारण किए हुए और मुण्ड माला पहने हुए हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ भगवान शिव शंकर को मैं भजता हूँ ।।

प्रचण्डं प्रकृष्टम प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।

त्रयःशूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजेऽहम भवानीपतिं भावगम्यम् ।।

हिंदी में अर्थ -प्रचंड यानी रुद्ररूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी,परमेश्वर, अखंड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के सामान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों यानी दुःखों का निवारण करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव ( प्रेम ) के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी यानी माँ पार्वती के पति भगवान शंकर को मैं भजता हूँ ।।

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कालातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।

हिंदी में अर्थ -सभी कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, कल्प का अंत करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुर के सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथने वाले कामदेव के शत्रु हे प्रभो, प्रसन्न होईये, प्रसन्न होईये।।

न यावद् उमानाथ पादारविन्दम, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावद् सुखं शान्तिसन्तापनाशं, प्रसीद प्रभो सर्व भूतादिवासम् ।।

हिंदी में अर्थ -जब तक पार्वती के पति आपके चरण कमलों को मनुष्य नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक और न ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और न ही उनके पापों का नाश होता है। अतः हे समस्त जीवों के अंदर ह्रदय में निवास करने वाले प्रभो ! प्रसन्न होइए।।


न जानामि योगं जपं नैव पूजां, नतोऽहम सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।

जराजन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो।।

हिंदी में अर्थ – मैं  न तो योग जानता हूँ, न ही जप और न पूजा ही। हे शम्भो मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमस्कार करता हूँ। हे प्रभो! बुढ़ापा और जन्म ( मृत्यु ) के दुःख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा कीजिए। हे ईश्वर ! हे शम्भो ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ।।

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥९॥

इस रुद्राष्टक को जो सच्चे भाव से पढ़ता है शम्भुनाथ, भोलेनथ उसकी सुनते हैं और आशीर्वाद देते हैं।

इति श्री गोस्वामी तुलसीदासकृतं रुद्राष्टकम सम्पूर्णम् ।।

इस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित यह रुद्राष्टक पूरा हुआ।




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